Sunday, November 27, 2011

सांझ !!!!.....

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       सांझ !!!!.....
सांवली सूरत मोहनी मूरत
स्वर्ण रथ पर बैठी
पश्चिम पथ पर जाती
विहगों को हर्षाती
कलरव गीत गवाती
नीड़ों में लौटाती ......
..............................................
दूर क्षितिज के संधि पट पर
नीलित नभ के सुकुमार मुख पर
नित नटखट अल्हड बाला सी
लाल गुलाल मल कर छिप जाती
................................................
और कहीं दीपों के कोमल उर में
मुस्कानों के पीत पुष्प खिलाती
वन उपवन धरा के छोर को
अपने श्यामल आँचल में छुपाती
....................................................
कहो प्रिये !!!
फिर कब आओगी ???
कजरारी आँखों से...
मंद मंद मुस्काती ...
थके पथिक को लुभाती ..
आलौकिक मंगल गीत गाती ...


श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ उत्तराँचल  भारत २०१०
हे प्रभु !!जीवन  के  सुहाने  दिवस  के  बाद सांझ  भी उतनी ही  सुन्दर सलोनी हो !!!

Tuesday, September 27, 2011

सभी मित्रों का हार्दिक अभिनन्दन !!!


















अभिनन्दन !!!.....
शब्दों की सीमा है..
प्रेम भवसागर अनंत....
नेह की पतवार ले..
तुम आये खेवन हार ..
कुसुमित नव पल्लवित
नव पुष्प शोभित...
अनंत नेह हार ..
स्वागत हे !
प्रेम पथिक..
भावों के इस ह्रदय द्वार..
कोटि कोटि अभिनन्दन ..
शुभ कामनाएं अनंत ..
कीजिये स्वीकार ....
....श्रीप्रकाश डिमरी ....

Sunday, August 21, 2011

सभी ब्लागर मित्रों को जन्माष्ठमी पर हार्दिक शुभ कामनाएं…


lord-krishna-makhan-chor
हम  अपने आपको भगवान के अर्पित करें
यही सबसे उत्तम सहारा है।
जो इसके सहारे को जानता है
वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।…..
****वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूरमर्दनं ।
      देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुं ॥****

Monday, July 18, 2011

प्रेम.....


प्रेम !!!..............


रात गए ...
तन्हाईयों में अक्सर ..
एक चहचाहट सी सुनकर
उठ जाता हूँ विस्मित होकर ..
उस घटाटोप अंधकार में भी
तुम्हारी प्रेम पाती मुस्कुराती है ..
और मेरे ह्रदय के नीड़ से उडकर
तुम्हारी भेजी दो नन्ही चिडियाँ ...
मन आंगन के अंधेरों में
आशाओं के असंख्य ...
मधुर गीत सुनाती है ..
तब .....
अपने तमाम नेह को
कागज में उडेलने के
अथक प्रयास में ....
मेरी आँखों में युगों से कैद
एक हठीले ....
निश्तब्ध महासागर का मौन
एकाएक टूट जाता है ..
और निर्झर बहते अश्रुओं में
तुम्हारा ही " प्रतिबिम्ब" मुस्कुराता है ...
....................................
( परम स्नेही मित्र प्रतिबिम्ब बर्थवाल जी के स्नेह को समर्पित )
स्वरचित..... श्रीप्रकाश डिमरी २३ मई २०१०

Wednesday, June 29, 2011

सभी ब्लाग्गर  मित्रों  को शुभ  दिवस

Tuesday, June 28, 2011

(१) सुनो शिशिर..... !!!!


हिम कँवर ...
जब तुम बरसाते
कम्पित विहग ..
कहाँ चले जाते ..!!!???
सुख की डोली में मगन
तुम झूलो
शिशुपन के पुलकित मन का
कैसा नीरव.....!!!!
ये सृजन ???
आह सखी ...
भर लायी हूँ मैं....!!
नैनो में उनका करुण रुदन ..
हिम कँवर ...
जब तुम बरसाते ..
कहो शिशिर ..!!!???
कम्पित विहग ...!!!
कहाँ चले जाते ...????
श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ जनवरी २०११
(२)
सुनो बसंत !!!!......
हे सखी !!!....
हिम कँवर न मैं बरसाता ....
सत्य कहना ...
सूखे अधर तुम्हारे
फिर कैसे मुस्काते ???
और माँ वसुंधरा..
के जीवन पथ पर ...
शिशु बसंत के
नव किसलय नव पुष्प
कैसे खिल पाते ???
सुकुमार पंछी पुलकित हो
क्या ?? नव सृजन के गीत गाते ....!!!!
उठो सखी...
भरे हुये इन नैनों से
हिलमिल कर फिर छेड़े ..
नव सृजन की तान..........
ब्यर्थ न जाए जीवन का
ये शास्वत बलिदान......
श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ १५ मार्च २०११

Saturday, April 23, 2011

सुनो शिशिर..... !!!!


१)
सुनो शिशिर..... !!!!

हिम कँवर ...
जब तुम बरसाते
कम्पित विहग ..

कहाँ चले जाते ..!!!???
सुख की डोली में
मगन तुम झूलो
शिशुपन के पुलकित मन का
कैसा नीरव.....!!!!
ये सृजन ???
आह सखी ...
भर लायी हूँ मैं....!!
नैनो में उनका करुण रुदन ..
हिम कँवर ...
जब तुम बरसाते ..
कहो शिशिर ..!!!???
कम्पित विहग ...!!!
कहाँ चले जाते ...????



****क्रमशः*****

श्रीप्रकाश डिमरी जोशीमठ, जनवरी २०११


Tuesday, March 22, 2011

मैं अब न लौटूंगा...!!!


आह !!!

प्रिये !!!

दृगों में लिपटे

तुम नन्हे फूल से

कहा रहे भटके ????

तुम मुझे भूल के ???

अब भुला ही देना ....

नहीं बुलाना मुझको

मैं अब न लौटूंगा ????

पर आज क्यों मैं ..!!!!

सशंकित हो उठा हूँ

क्या तुम खो जाओगे ???

असहाय होकर

मुझे क्या

उस पार ...

जाता हुआ...

देख पाओगे ???

या रुदन में

आसुंओं के बीच

दृग में मुझे पाओगे .. ????

शांत रहना तुम ..

किंचित ना रोना

धरा पर झर रहे पुष्पों से

यूँ ब्यथित ना होना ....!!!

काट लेना इस विपद को

मित्र तुम धीर से ...

मैं चला उस पार ....

शरद की पीर से

तुम करना प्यार ..

उस शेष से

जो कल फिर ...

क्षितिज के ….

उस पार से

बसंत बन मुस्काएगा ....

अंक में भर कर तुम्हे ...

मेरे स्वरों में

विरह गीत सुनाएगा... ..

श्रीप्रकाश डिमरी

जोशीमठ १६-३-२०११

Wednesday, January 19, 2011

अभिलाषा.....!!!!


     अभिलाषा....... 
मैंने   जब भी
प्रेम ओर  संवेदना की  जोत जलायी
तुमने ....
अविश्वाश  ओर दंभ से बुझायी ..
ऐसे जहाँ में...
 जहाँ  स्नेह बना  मरुस्थल ....
.आस्था ओर पवित्रता ....
जैसे  भूकंप  सी  हलचल
में क्योंकर ..
भूला  ...
अविश्वाश  की अंतहीन  खाई  ...
शीशे  को रौंदते  ....
 पत्थर के पुतले
 क्यों  न दिये दिखाई ...????
उस जहाँ में...
जहाँ ....
हर चेहरे  पर ..
शुष्क रेगिस्तान सी  मरीचिका  है ...
   फिर भूली  बिसरी
 किसकी याद आई...???
क्यों ...
उर की कोंपल मुरझाई ???
दुहाई है  दुहाई .....
हे ! प्रभु !...
यूँ  फिर  कभी इंसान न  बनाना
अगर
हो सके तो...
इंसानों की  बस्ती  से....
दूर बहुत  दूर  ..
उस तलहटी में ..
जहां हो ...
इन्द्रधनुषी...
 रंगों की  अठखेलियाँ
हरी दूब की ...
 अबोध  मुस्कानों  की लड़ियाँ ...
विहगों के...
 कलरव का मधुर  गान  ..
झरने की  ....
कलकल निर्मल   तान ....
प्रभात  के ..
अरुणिम सुकुमार  मुख पर
सांझ की ...
 सांवली  सलोनी मुस्कान...
वहीँ ....हाँ  वहीँ...
मुझे ...
चिर निंद्रा  में सुलाना
जन्म मृत्यु  के
 चक्र में ….
अगर  कभी पड़े  जगाना
तो  एक नन्हा  सा..
 फूल बनाकर  खिलाना  
पर  ....
  फिर  कभी इंसान न  बनाना
श्रीप्रकाश डिमरी...जोशीमठ
२० दिसम्बर  २०१०